किसको सुनाऊं मेरा दुखड़ा: प्रकृति अरे ओ मनुज किसको सुनाऊं मेरा दुखड़ा

किसको सुनाऊं मेरा दुखड़ा: प्रकृति
अरे ओ मनुज किसको सुनाऊं मेरा दुखड़ा
मेरी आरजू तो सिर्फ परोपकार की थी
लेकिन मैं मजबूर हूं तुमने तो सारी हदें ही पार की, आखिर इतना हलाहल जो घोल दिया तुमने मेरी इस पवित्र अवनी पर।
मैंने मनुष्य को ही नहीं बल्कि अन्य जीव जंतु पशु पक्षियों सभी को अपनी संतान माना है, लेकिन तुम लोगों ने तो उनको भी नहीं छोड़ा
तुम इंसानों ने तो सिर्फ अपना हक जताया है।
आखिर तुम यह बताओ मेरा कसूर ही क्या है? क्या नहीं दिया मैंने तुम्हें।
प्राणवायु दी, फल फूल सब्जीया दि , अपनी तरु की छाया दी ओषधियां दि, शुद्ध वातावरण दिया ,लकड़ी दी, सब कुछ दिया।
मैने तो सिर्फ परोपकार की भावना रखी कभी मेरे लिए कुछ नहीं बचाया।
लेकिन बदले में मुझे क्या मिला?
तुमने तो मेरी देह से सिर्फ लहू बहाया है।
वृक्ष काटे, गौ हत्या ,पशु पक्षी जीव जंतु सभी का शिकार किया, नारी शक्ति का मान सम्मान छीना ,मेरी तरंगिणी को गंदा किया, चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ गंदगी फैलाई और मुझे प्रदूषित किया।
क्या मेरे परोपकार के बदले मुझे यही सब मिला था?
बस अब पीड़ा सह नहीं जाती।
आखिर तुम्हे भी तो अपने कर्मों का फल मिले।
सुखा ,अकाल, बाढ़ ,आंधी ,तूफान, महामारी आदि अनेक बीमारियां यह सब कुछ तुम्हारे कर्मों का फल है।
अरे ओ मनुज किसको सुनाऊं मेरा दुखड़ा।
मेरी आरजू तो सिर्फ परोपकार की थी।
लेकिन मैं मजबूर हूं तुमने तो सारी हदें ही पार कर दी।
आखिर इतना हलाहल जो घोल दिया तुमने मेरी इस पवित्र अवनी पर।
अरे ओ मनुज किसको सुनाऊं मेरा दुखड़ा,,,,,,,,,,,,,,,
आरती माली D/o शिवलाल माली
(सालमगढ) प्रतापगढ़