पंचायत समयप्रदेशभोपाल

विपक्ष को झेलने का जिगरा सिर्फ रोजगार सहायक में है…मामा जी…

धरातल पर योजनाओं को मूर्तरूप देने वाले जीआरएस की पीड़ा बताने में आंसूओं का सेलाब आ जायेगा, और सरकार उसमें बह जाएगी

विपक्ष को झेलने का जिगरा सिर्फ रोजगार सहायक में है…मामा जी…

धरातल पर योजनाओं को मूर्तरूप देने वाले जीआरएस की पीड़ा बताने में आंसूओं का सेलाब आ जायेगा, और सरकार उसमें बह जाएगी

भोपाल। शिवराज सरकार पंचायतकर्मीयों को पिछले कई वर्षों से उनकी मांगो को लेकर आश्वासन देती आ रही है, लेकिन सरकार इस बात से बेखबर है कि इनकी धरातल पर जनकल्याणकारी योजनाओं को मूर्तरूप देने से लेकर सरकार बनाने तक में अहम भूमिका है। तोड़-मरोड़ कर बनने वाली शिवराज (मामा जी) सरकार आपसे एक विपक्ष का नेता बर्दाश्त नही होता, लेकिन अल्प वेतन लेने वाला पंचायत रोजगार सहायक (जीआरएस) रोजाना गांव में 30 से 35 नेताओं को झेलने का जिगरा रखता है। आपके राज में नौ हज़ार का अल्प वेतन पाने वाला यह जीआरएस हर किसी के शोषण का शिकार है।

मध्यप्रदेश की लगभग 23 हज़ार ग्राम पंचायतों में रोजगार सहायक, सहायक सचिव 12 वर्षों से लगातार रात-दिन सभी काम के बोझ को ढ़ोह रहे है, कि एक दिन सरकार हमारी भी सुनेगी और नियमितीकरण करेगी। लेकिन मामाजी तो भांजियों के मोह में डूबकर बह गए है। मामाजी हर बार इन अनैतिक बोझ ढ़ोह रहे, पीड़ा सह रहे रोजगार सहायकों के आंदोलन को झूठे आश्वासन के गदा से धवस्त करते आए है, लेकिन अब मामाजी की बारी है। इन रोजगार सहायकों का दुखड़ा कम नहीं है, अगर वह बाहर आया तो मामाजी की सरकार का उस सेलाब में बहना पक्का है, जिसका मानस लगभग समस्त पंचातकर्मीयों ने इस साल विधानसभा चुनाव में सरकार को धक्का मारने का बना लिया है।

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव सर पर है लेकिन सरकार अपने कार्यकाल में पंचातकर्मीयों की मांग को पूरा अभी तक भी नहीं कर रही है, जिसका खामियाजा मामाजी को भुगतना लगभग तय है। विधानसभा चुनाव मे ग्रामीण क्षेत्रों से मतदान पर हार -जीत तय होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन पंचायतकर्मीयों का अच्छा खासा आमजन से समन्वय और सीधा संवाद भी होता है। माना जाता है कि हर एक पंचायतकर्मी के साथ उसके परिवार के अलावा पॉंच व्यक्ति जुडे होते है, जिसके आधार पर सरकार को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा कर यह पंचायतकर्मी अपना शक्ति प्रदर्शन कर सकते है।

रोजगार सहायकों पर दुसरे विभागों के काम की भी जिम्मेदारी लाद दी जाती है, नहीं करने पर सेवा समाप्ती डर की तलवार लटकी रहती है फि र वो भले ही स्वास्थ्य विभाग का आयुष्यमान कार्ड, महिला बाल विकास का लाड़ली बहना, खाद्य विभाग का खाद्यान्न, आधार कार्ड अपडेट, निर्वाचन का बीएलओ का ही क्यों ना हो। इनका ना अवकाश तय है, और ना ही कार्य सीमा। बस बेजुबान जीव की तरह बोझा डालते रहो। हर कार्य में सरकार इनको तारीख के साथ टारगेट पर रख देती है। नौ हज़ार की अल्प वेतन पाने वाले रोजगार सहायक के साथ उसका परिवार व जीवन भी जुड़ा हुआ है… मामाजी।

राजस्थान में रोजगार सहायक का वेतन आठ हज़ार से बीस हज़ार हुआ

प्रदेश के पड़ोसी राज्य राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने पंचायत रोजगार सहायकों का मानदेय 8 हज़ार रूपए से बढ़ाकर 20 हज़ार रूपए प्रतिमाह कर सीएम अशोक गहलोत ने अनोखी सौगात से रोजगार सहायकों को नवाजा है। राजस्थान में भी इसी वर्ष के अन्त तक विधानसभा चुनाव होना है। साथ ही राजस्थान सरकार ने मंहगाई राहत केम्प के साथ इन रोजगार सहायको का माह अप्रैल का वेतन लागू किए गए नये वेतनमान से किया है। राजस्थान सरकार ने शहरी रोजगार गारन्टी शुरू कर 100 दिवस से बढ़ाकर 125 दिन मजदूरी का अधिकार भी दिया है।

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