प्रतापगढ़

शिक्षा का अधिकार और शिक्षा से वंचित हो रहे बच्चे,निजी विद्यालयों की तानाशाही के सामने, शिक्षा विभाग नतमस्तक

टीसी, अंकतालिका के अभाव में पढ़ाई छोड़ने पर विवश बच्चें।
न्यायालय, प्रशासन, और निदेशालय के आदेशों की उड़ा रहे धज्जियां
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में हो रही धांधली निजी विद्यालयों की मनमानी से जिले में सैकड़ों बच्चे पढ़ाई छोड़ने पर विवश।
समझाईश के नाम पर अधिकारी अभिभावकों का उड़ा रहे मखौल।

प्रतापगढ़। जिले में सैकड़ों बच्चें इन दिनों अपनी पढ़ाई छोड़ने पर विवश हो रहे है। कारण निजी विद्यालयों की ओर से बच्चों की टीसी व अंकतालिका रोक ली गई है। कोरोना संक्रमण के चलते लोकडाउन अवधि के दरमियान लोंगों के काम धंधे पूरी तरह से चौपट हो चुके थे। लेकिन निजी विद्यालयों की फीस का मीटर बदस्तुर जारी रहा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर अभिभावकों से मनमानी फीस वसूल रहे है। एक तरफ कानुन ही बच्चों को शिक्षा का अधिकार भी दे रहा है। वही कानुन का सहारा लेकर निजी विद्यालय बच्चों को शिक्षा से वंचित करने पर तुले हुए है। हालांकि अभिभावकों के समक्ष राजकीय विद्यालयों के रूप में उम्मीद की किरण जगमगा रही थी। लेकिन यहां बगैर टीसी और अंकतालिका के बच्चों को प्रवेश नहीं देकर उम्मीद के इस दीये को रोशन होने से पहले ही बुझाया जा रहा है। अभिभावक शिक्षा विभाग, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, शिक्षा निदेशालय आदि के समक्ष अपनी वेदना प्रकट कर रहे है। लेकिन समस्याओं का कोई अंत होता नहीं दिख रहा है। टीसी प्राप्त करने के लिए अभिभावक शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों के दफतरों के चक्कर पर चक्कर काटते हुए घन चक्कर बन रहे है।
सबसे हास्यास्पद बात यह सामने आती है आलाअधिकारी समस्या के समाधान के विपरीत अभिभावकों को कहते हुए पाये गए है कि आप राजकीय विद्यालयों में अपने बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाते हो। प्रदेश के सबसे बड़े राजकीय विभागों में शिक्षा विभाग का नाम आता है। हजारों नहीं लाखों कार्मिक इसमें कार्यरत है। क्या कोई शिक्षा विभाग का कार्मिक यह बता सकता है कि वे अपने बच्चों को राजकीय विद्यालयों में पढ़ा रहे है। कहने का तात्पर्य सीधा है कि शिक्षाविभाग के कार्मिक यानी शिक्षकों को अपने विभाग के साथियों की योग्यता पर ही भरोसा नहीं है और वे अपने बच्चों को उंचे से उंचे निजी विद्यालयों में अध्ययन करवा रहे है। ऐसे में आमजन की क्या बात करें। कोरोना के चलते लोगों के धंधे चौपट होने से हालात बदतर हुए है लोगों की आर्थिक स्थिति डगमगाई है। अन्यथा हालात ऐसे उत्पन्न नहीं होते। हाल ही में कुछ मामले ऐसे हुए है जिनको देख स्पष्ट है कि शिक्षा विभाग पुरी तरह से निजी विद्यालयों की तानाशाही के समक्ष नतमस्तक हुआ है। जबकि अपर जिला एवं सेशन न्यायालय के आदेश होने के बावजूद टीसी रोकना न्यायालय के आदेश की अवहेलना की श्रेणी में आता है। लेकिन निजी विद्यालयों के हौंसले इतने बुलन्द है कि वे इसे भी मानने को तैयार नहीं है। एक अन्य मामले में निजी विद्यालय द्वारा अनेतिक फीस वसूली को लेकर अभिभावक को विद्यालय परिसर में बच्चों और स्टाफ के समक्ष गिरेबान पकड़कर बेइज्जत किया गया और बाद में उसके लिए कोई शर्मिन्दगी भी महसुस नहीं की जा रही है। उल्टे बच्चों की टीसी रोक कर मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है। ऐसे कई मामले है। जिन पर गौर किया जाए तो इससे प्रतित होता है कि इसमें शिक्षा विभाग और विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है। बात दरअसल कुछ भी हो इन सभी में न्यायालय के आदेशो की एक तरफा पालना से देश की भावी पीढ़ी अपने शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रही है।

तारूसिंह यादव

Tarusingh Yadav National Chautha Samay News City Reporter, Pratapgarh (Rajasthan), Contact: +91 88299 42088, Email: [email protected], Corporate Office Contact; +917891094171, +919407329171, Email' [email protected]

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