धर्म/कर्म

श्राद्ध पक्ष हमारी श्रद्धा का पक्ष

Chautha samay@singoli news

सिंगोली 25 सितंबर ।पूर्वजों के प्रति हम अपनी भावनाओं को पंद्रह दिन में पूर्ण आस्था और निष्ठा से उनको समर्पित करते हैं. श्राद्ध मृत्यु उपरांत किए जाने वाला और्ध्व दैहिक संस्कार है.अमावस्या में विदाई होने से पितृ पक्ष का समापन होता है. विदाई के क्षण बहुत कठिन होते हैं. रिश्ते जीवित हो या मृत, रिश्तों का प्यार कभी खत्म नहीं होता है.जिंदगी का हिस्सा बने सदस्य जब किसी भी कारण से मौत के आगोश में चले जाते हैं तो जीवन ठहर जाता है. उनके इंतजार की कभी ना खत्म होने वाली प्रतीक्षा जिंदगी का अहम् हिस्सा बन जाती है. पितरों की निकटता और सामीप्य का अहसास हम पितृ पक्ष में उनके प्रति अपनी श्रद्धा के द्वारा प्रकट करते हैं. हिंदू धर्म में अनेक मान्यताएं मन को भक्ति की शक्ति की ओर अग्रसर करती हैं. ये भक्ति हम ना केवल अपने ईश्वर के प्रति बल्कि अपने उन प्रिय रिश्तों के प्रति भी रखते हैं जो हमारे पितृ हो जाते हैं अर्थात् मृत्यु लोक से गमन कर परलोक चले जाते हैं और पितृ रुप में दृष्टि गोचर होते हैं.
मृत पूर्वजों के प्रति हम अपनी भावनाओं को पंद्रह दिन में पूर्ण आस्था और निष्ठा से उनको समर्पित करते हैं. हमारे पितृ भी हमसे मिलने के लिए पंद्रह दिन के लिए अदृश्य रुप में हमारे बीच ही रहते हैं मानो वो भी इन दिनो की प्रतीक्षा करते हैं और हमारा सामीप्य चाहते हैं. हमारे लिए किसी ना किसी रुप में धरती पर अवतरित होते हैं. माता-पिता या अन्य किन्हीं पूर्वजों के ऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं. साथ ही उनकी आत्मा की शांति के लिए, उन्हें तृप्त करने के लिए धरती पर उन्हें आमंत्रित करते हैं. श्राद्ध मृत्यु उपरांत किए जाने वाला और्ध्व दैहिक संस्कार है.

श्राद्ध के लिए प्राचीन मान्यताएं हैं कि जिनके पुत्र हों वे ही श्राद्ध कर सकते हैं पर श्राद्ध के प्रति भी अवधारणाएं बदली हैं. हर घर में पितरों का श्राद्ध किया जाता है. पितृपक्ष में उनकी याद में अन्न, फल, वस्त्रों के दान से तर्पण आदि की क्रिया की जाती है. शास्त्रों के अनुसार बताया गया हैं कौन श्राद्ध कर सकता है कौन नहीं किंतु दिवंगत आत्मा की शांति के लिए परिवार के किसी भी सदस्य के द्वारा किया गया तर्पण स्वीकार होना चाहिए फिर चाहे वो सदस्य महिला हो या पुरुष. सात पीढ़ी तक श्राद्ध करने की मान्यता है पर जितना भी अपनी सामर्थ्यनुसार हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतसंकल्प हो उनके निमित्त कुछ कर सकें यह भी पर्याप्त है.

श्राद्ध में प्रतिदिन गौ माता को सुबह भोजन कराना चाहिए चाहे दो ही रोटी दें. जिस तिथि पर अंतिम संस्कार हो उसी तिथि पर श्राद्ध कर्म करके आत्म संतुष्टि का अनुभव होता है और मृतक की आत्मा को शांति मिलती है. निःसन्तान व्यक्ति के परिवार का कोई भी सदस्य उसका श्राद्ध कर सकता है. मान्यताओं को जितना हो सके निभाना चाहिए उनका मखौल नहीं उड़ाना चाहिए लेकिन उनका गुलाम भी नहीं होना चाहिए. मृत व्यक्ति का श्राद्ध सम्पन्न हो फिर करने वाला चाहे बेटा हो या बेटी. मरने के बाद किसने किसको देखा है. ये भाव ही तो है जो इन पंद्रह दिनों के लिए हम अपनों को अपने निकट पाते हैं. लगता है कुछ दिनों के लिए हमारे पितृ हमारे साथ रहने आ गए हों. पितृ पक्ष का बड़ा महत्व है. आमंत्रित करने पर वह आते हैं इसके प्रत्यक्ष उदाहरण भी देखने को मिलते हैं।

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