सुप्रीम कोर्ट की शिवराज सरकार को दो टूक, आग से मत खेलिए,कानून के दायरे में रहकर चुनाव कराएं # 1 Super best amazingly

सुप्रीम कोर्ट की शिवराज सरकार को दो टूक, आग से मत खेलिए,कानून के दायरे में रहकर चुनाव कराएं # 1 Super best amazingly
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव 2021 को लेकर शिवराज सरकार को बड़ा झटका देते हुए मध्यप्रदेश राज्य चुनाव आयोग को भी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए कानून के दायरे में ही रहकर चुनाव करवाने की नसीहत दे डाली है और व्ठब् के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करने को कहा है। ऐसा नहीं किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को चुनाव रद्द करने के भी संकेत दे दिये है।
देश में महाराष्ट्र के बाद अब मध्य प्रदेश दुसरा राज्य है जिसमें निकाय और पंचायत चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है। मध्य प्रदेश में होने वाले स्थानीय निकाय में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण पर चुनाव नहीं होगा। OBC के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य सीट मानते हुए चुनाव कराने को कहा गया है।
एमपी में पंचायत चुनाव में रोटेशन प्रक्रिया सहित अन्य प्रक्रिया का पालन न करने को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार लगाई। कोर्ट ने दो टूक कहा कि राज्य सरकार ओबीसी आरक्षण मामले में आग से मत खेले। याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा के मुताबिक राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए गए हैं कि चुनाव संविधान के हिसाब से हो तो ही कराइए। अभी सुप्रीम कोर्ट का विस्तृत आदेश आना शेष है।
ओबीसी आरक्षण मामले में सुप्रीम कार्ट ने राज्य सरकार को दो टूक कहा कि आग से मत खेले। याचिकाकर्ताओं के वकील विरष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने बताया है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देशीत किया है कि चुनाव संविधान के अनुसार हो तो ही कराइए।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 243 (C) और (D) का हवाला देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश पंचायत चुनाव में आरक्षण रोटेशन का पालन नहीं किया गया है। जो संवीधान की धाराओं का खुला उल्लंघन है। उधर मध्यप्रदेश राज्य चुनाव आयोग ने कहा है कि कोर्ट के आदेश के बाद ही चुनाव रोकने पर निर्णय लिया जाएगा।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बड़ी साखंथलि की बालिकाओं को साइकिल वितरण # 1 Super best amazingly
राज्य निर्वाचन आयोग असमंजस में इसलिए भी है, क्योंकि पंचायत चुनाव को लेकर 2014 के आरक्षण के हिसाब से जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, सरपंच और पंच के नामांकन भरवाए जा रहे हैं। चूंकि जिला पंचायत अध्यक्ष की प्रक्रिया और चुनाव इसके संपन्न होने के बाद होगी, इसलिए मामला खटाई में पड़ता गया है। सब कुछ नए सिरे से होगा।
कोर्ट ने आधे घंटे की सुनवाई में सरकार और आयोग को जमकर लगाई फटकार
दोपहर दो बजे मामले की सुनवाई शुरू हुई। लगभग आधे घंटे चली सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार लगाते रहे। याचिककर्ता कांग्रेस पंचायत प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डीपी धाकड़ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा ने पक्ष रखा। महाराष्ट्र चुनाव का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी मामले में आग से मत खेलो। ओबीसी सीटों के आरक्षण पर रोक लगाते हुए इस पर राज्य सरकार से जवाब मांगा।
अर्जेंट हियरिंग से जबलपुर हाईकोर्ट ने किया था इनकार
जबलपुर हाईकोर्ट का याचिका पर अर्जेंट हियरिंग से इनकार के बाद याचिकाकर्ताओं ने 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने इसे स्वीकार करते हुए शुक्रवार को सुनवाई की तारीख तय की थी। याचिकाकर्ताओं के साथ ही मध्यप्रदेश सरकार सहित अन्य पक्षकारों को भी अपना पक्ष रखने के लिए निर्देशित किया था। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को स्पष्ट कर चुका है कि एमपी में होने वाला त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव आदेश के अधीन होगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुरुवार को याचिकाकर्ताओं ने जबलपुर हाईकोर्ट में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के रोटेशन सहित अन्य प्रक्रियाओं में नियमों का पालन न करने का मामला उठाते हुए चुनाव पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की खंडपीठ से अर्जेंट हियरिंग की मांग की थी। हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए तीन जनवरी की अगली तारीख तय कर दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई। जहां याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई तय की थी।
पंचायत चुनाव की वैधानिकता, अध्यादेश, रोटेशन और परिसीमन को लेकर लगी थी याचिकाएं
एमपी में पंचायत चुनाव को लेकर अलग-अलग याचिकाएं दायर हुई हैं। पहले ग्वालियर खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई। वहां से प्रकरण मुख्य खंडपीठ पहुंची। वहां नौ दिसंबर को एक साथ सभी याचिकाओं की सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव पर रोक लगाने से मना कर दिया। तब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने सुप्रीम कोर्ट में चले गए। सुप्रीम कोर्ट में 15 को हाईकोर्ट और 16 को हाईकोर्ट द्वारा अर्जेंट हियरिंग से मना करने पर फिर याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।
पंचायत चुनाव की वैधानिकता चुनौती
भोपाल के मनमोहन नायर और गाडरवाडा के संदीप पटेल सहित पांच अन्य याचिकाकर्ताओं ने तीन चरणों में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की वैधानिकता को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है राज्य सरकार ने 2014 के आरक्षण रोस्टर से चुनाव करवाने के संबंध में अध्यादेश पारित किया है,जो असंवैधानिक है। 2019 में राज्य सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से नए सिरे से आरक्षण लागू किया था। बिना इस अध्यादेश को समाप्त किए, दूसरा अध्यादेश लाकर 2022 का पंचायत चुनाव 2014 के आरक्षण के आधार पर कराने का निर्णय लिया गया है, जो असंवैधानिक है।
चौथा समय न्यूज़ एप्प डॉउनलोड़ करने के लिए…क्लिक करें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा तर्क दे चुके हैं कि महाराष्ट्र में आरक्षण संबंधी प्रावधानों का पालन ना होने पर सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना निरस्त करते हुए फिर से अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया है। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में भी आरक्षण और रोटेशन का पालन नहीं किया गया जो असंवैधानिक है। वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा भी साफ कर चुके हैं कि यह संविधान की धारा 243 C और D का साफ उल्लंघन है।
रोटेशन मामले में 21 दिसंबर को हाईकोर्ट में होगी सुनवाई
उधर, एमपी हाईकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुरुवार 16 दिसंबर को एमपी हाईकोर्ट में दमोह निवासी डॉ. जया ठाकुर और छिंदवाड़ा निवासी जफर सैयद की ओर से लगाई गई याचिका पर भी सुनवाई हुई थी। याचिकाकर्ताओं ने 2014 के आरक्षण के आधार पर चुनाव कराने और रोटेशन की प्रक्रिया का पालन न किए जाने की संवैधानिकता को चुनौती दी है। अधिवक्ता वरुण सिंह ठाकुर के तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने मामले में 21 दिसंबर को अगली सुनवाई तय की है।
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के बाद अब पंचायत चुनाव भी टलने के आसार हैं।
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के बाद अब पंचायत चुनाव भी टलने के आसार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राज्य निर्वाचन आयोग से कहा कि कानून के दायरे में रहकर ही चुनाव करवाए। OBC के लिए निर्धारित सीटों को सामान्य सीटों में तब्दील करने की अधिसूचना जारी करे, जबकि मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव में 13% सीटें पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए रिजर्व की गई हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करने के लिए नए सिरे से आरक्षण प्रक्रिया करनी होगी। बता दें कि सीटों का आरक्षण संबंधित क्षेत्र की आबादी के हिसाब से होता है।
मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव में 8% अनुसूचित जाति (SC), 14% अनुसूचित जनजाति (ST), 13% पिछड़ा वर्ग (OBC) और शेष 65% सीटें सामान्य वर्ग के लिए रिजर्व की गई हैं। यह आरक्षण 50% से ज्यादा है।
मप्र में 52 जिले हैं। इस हिसाब से 26 से ज्यादा सीटें रिजर्व हो सकती हैं, लेकिन वर्तमान में 35 सीटें रिजर्व हैं। यानी 9 सीटें सामान्य करना होंगी। इसके लिए आरक्षण की प्रक्रिया नए सिरे से करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का पालन नहीं होगा, तो भविष्य में चुनाव को रद्द भी किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी को करेगा।
जिला पंचायत अध्यक्ष पद का आरक्षण रद्द
पंचायती राज आयुक्त आलोक कुमार सिंह ने कहा कि प्रदेश के 52 जिला पंचायत अध्यक्ष पद के आरक्षण को रद्द कर दिया गया है। आरक्षण प्रक्रिया शनिवार 18 दिसंबर को होने वाली थी। इस संबंध में देर शाम आदेश जारी कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं।
महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव पर आ चुका है फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को महाराष्ट्र में स्थानीय चुनावों में OBC के लिए आरक्षित 27% सीटों के अध्यादेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने 6 दिसंबर के आदेश में तब्दीली से इनकार करते हुए कहा कि राज्य निर्वाचन आयोग अपनी पिछली अधिसूचना में बदलाव करते हुए हफ्ते भर में नई अधिसूचना जारी करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिसूचना में पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण के प्रावधान को रद्द करते हुए बाकी 73% सीटें सामान्य श्रेणी के लिए रखे जाने की नई अधिसूचना एक हफ्ते में जारी करने का आदेश आयोग को दिया है।
आयोग ने बुलाई बैठक
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की प्रति शाम 6 बजे तक राज्य निर्वाचन आयोग को नहीं मिली थी, लेकिन आयोग के सचिव बीएस जामोद ने आगे फैसला लेने के लिए कानूनी राय के लिए अफसरों की बैठक बुलाई है। जामोद का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति मिलने के बाद ही स्थिति स्पष्ट की जा सकेगीl आदेश को पढ़ने के बाद ही आगे निर्णय लिया जाएगा।
क्या है ट्रिपल टेस्ट
1- राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की कठोर जांच करने के लिए एक आयोग की स्थापना।
2- आयोग की सिफारिशों में स्थानीय निकायवार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो।
3- किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50% से अधिक नहीं होगा।
big breaking:-लड़कियों की शादी की उम्र बदली, भारत सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र बदली, कैबिनेट की मंजूरी, अब इस न्यूतनम वर्ष की आयु में होगी शादी, पढ़िए यह पूरी खबर |
विशेष आग्रह एवं अपनी बात
चौथा समय न्यूज़ आपके लिए हमेशा प्रयासरत है की देश-विदेश एवं आपके अपने क्षेत्र की हर आवश्यक सूचनाऐं, जानकारी, योजनाओं से समय समय पर आप सभी को अवगत कराया जाऐ। किन्तु तकनीकी के इस दौर में जहां आसानीयां हुई है वहीं परेशानीयों ने भी जन्म लिया है। कहने का तात्पर्य है कि हर समय एक सा नहीं होता और तकनिकी का तो बिलकुल नहीं, क्योंकि जो आज मिल रहा है वहीं आपको कल मिले ऐसा बिलकुल भी मुमकिन नहीं।
हम आपको बताना यह चाहते है कि चौथा समय न्यूज़ ने विगत तीन वर्षो से प्रयत्न किया है कि आपकी सेवा मे किसी भी प्रकार की कोई कमी ना रह जाऐं लेकिन हमें इन तीन से चार महिनों मे तकनिकी तोर पर काफी पेरशानीयो का सामना करना पड़ा है जिसके लिए हम आप सभी हृदय से खेद प्रकट करते है और आभार व्यक्त करते है कि ऐसी विकट स्थिती में भी आप पाठाकों ने हम पर पुरा भरोसा बनाऐं रखा। फलस्वरूप हम फिर आप लोगों के लिए एक बार फिर इसी आशा के साथ हम इस तकनिक के माध्यम से आप तक सभी आवश्यक वस्तुओं का संचार करने का प्रयत्न करेंगे।
आखिर मे हम एक बार फिर आप सभी का आभार व्यक्त करतें हुए आशा करते है कि जैसे आप सभी पाठकों ने हम पर विश्वास जताकर हमकों जो पहचान दिलाई वह उसी तरह बरकरार रहें। हम आपको पहले की तरह सभी आवश्यक समाचार आप लोगोें तक पहुंचाते रहे।
सुप्रीम कोर्ट की शिवराज सरकार को दो टूक, आग से मत खेलिए,कानून के दायरे में रहकर चुनाव कराएं # 1 Super best amazingly