कोटा

14 सितम्बर हिंदी दिवस विशेष: भारत का अभिमान है हिंदी, भारतीय भाषाएं नदियां है और हिंदी महानदी।

Chautha samay @kota news

कोटा।(सुगना धाकड़) हम हिंदुस्तान में रहते हैं और हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है राष्ट्रभाषा उस भाषा को कहते हैं जिसका व्यवहार समग्र देश में होता है जो पूरे देश में लिखी पढ़ी और समझी जाती है। जो देश को भावनात्मक रूप से एकता में बांधने की क्षमता रखती हो और वह लचीलापन एकमात्र हिंदी भाषा में ही है। भारत में अनेक भाषाओं के होते हुए भी हिंदी भाषा का अपना महत्व है हिंदी भारत की आत्मा में बसी हुई है जो देश के हर कोने में जानी पहचानी जाती है और यहीं विविधता में एकता भारत जैसे बहुपंथी बहुभाषी और बहुरंगी देश की सबसे बड़ी शक्ति रही है। यही वह स्रोत है जिसने समूचे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोकर कर रखा हुआ है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने बड़े ही सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था कि “भारतीय भाषाएं नदियां है और हिंदी महानदी ”
भाषा का वरदान यदि इंसान को ना मिला होता तो रोशनी होते हुए भी वह अंधेरे में होता जानवरों की तरह उसकी बस्ती भी गूंगी होती । परंतु अनुकूल शारीरिक संरचना के कारण जब उसके मुख से शब्द निकले तो वह पुल बन गए और एक दूसरे से जुड़ते चले गए और फिर भाषा का विस्तार हुआ।

तो हम हिंदी से इतना परहेज क्यों करते हैं ? क्यों अंग्रेजी भाषा को ही हम अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए उपयोग में लाते हैं? क्यों हम स्वयं को अंग्रेजी ना आने पर शर्मिंदा महसूस करते हैं ? शर्मिंदा तो हमें तब होना चाहिए जब हमें सही से हिंदी भाषा नहीं आती हो। अगर हम अपनी मातृभाषा के कारण स्वयं को पिछड़ा हुआ मानते हैं तो हमें अपने विचार और आचरण पर मनन करने की जरूरत है । क्या हमने कभी किसी अन्य देश के वासियों को अपनी भाषा पर शर्मिंदा होते देखा है ? नहीं देखा होगा ! सब अपनी मातृभाषा से ही प्यार करते से ही प्यार करते हैं उसका ही सम्मान करते हैं। वर्तमान समय में शिक्षित होने का तात्पर्य बस अंग्रेजी भाषा पर मजबूत पकड़ करना होता है। देश में तकनीकी और आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ अंग्रेजी पूरे देश पर हावी होती जा रही है हिंदी देश की राष्ट्रभाषा होने के बावजूद भी आज हर जगह अंग्रेजी का ही वर्चस्व कायम है । हम अमेरिका या इंग्लैंड के निवासी नहीं हैं जिसके कारण हमारे लिए अंग्रेजी भाषा
आवश्यक हो। हम भारतवासी हैं और हमारी प्राथमिकता भी हिंदी भाषा ही होनी चाहिए । हम अपने विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति जितनी सहजता और सुंदरता के साथ हिंदी भाषा में कर सकते हैं शायद ही अन्य किसी भाषा में कर पाएं। अपने ह्रदय के भावों की मिठास को केवल हम हिंदी में ही महसूस कर सकते हैं । यहां मेरा हिंदी का समर्थन करने का आशय यह बिल्कुल भी नहीं है कि हम संसार की अन्य भाषाओं का अवलोकन ना करें! अवश्य करें, क्योंकि भाषा चाहे जो भी हो किसी भी प्रांत की हो या किसी भी देश की हो अगर हमें मौका मिले तो अवश्य ही सीखना चाहिए । किसी अन्य देश की भाषा या संस्कृति सीखने में कोई दूर्विचार नहीं है पर बिना सोच विचार करें अपनी संस्कृति या भाषा को त्याग कर दूसरी संस्कृति या भाषा का अनुसरण करना अवश्य विचारणीय विषय है। हिंदी में पुरातन भारतीय परंपराओं की अभिव्यक्ति के साथ ही आधुनिक
आवश्यकताओं की पूर्ति की भी अपूर्व क्षमता है। अतः हमें हिंदी भाषा को उपेक्षित नहीं होने देना चाहिए एवं उसको प्रसारित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए । हमें हिंदी को दोयम दर्जे पर नहीं रखना चाहिए हमें अपनी मातृभाषा का विस्तार करना चाहिए तभी हम सही मायने में अपने देश को उसके नाम * “हिंदुस्तान “* से सार्थक कर पाएंगे ।

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